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कद्दू कटेगा सब मे बटेगा (ज्ञानवर्धक बाल-कथाएँ)

बहुत पुरानी बात है। सुंदरवन में पशु-पक्षी मिल-जुल कर रहते थे। दिलावर शेर को राजा बनाया गया। दिलावर बोला-”मुझे एक होशियार मंत्री भी चाहिए। बेहतर मंत्री को हर मामलों में होशियार होना चाहिए। होली का अवसर है। मेरे बगीचे में कई तरह के फल पेड़ों में लगे हैं। सब्जियाँ ही सब्जियाँ लगी हैं। आज रात जिसे जो खाना हो, मेरे बगीचे में उसे जाने की छूट है। भर-पेट खाओ। आप सभी को होली मुबारक हो।”

सबने दिलावर राजा को भी बधाई दी। रात का कौन इंतजार करता। अधिकांश जानवर बगीचे की ओर दौड़ पड़े। रासू सूअर ने आलू खोद डाले। खूब खाए और अपनी आदत के मुताबिक इधर-उधर बिखरा भी दिए। भैंस नरम-नरम घास के लिए नमी वाले खेत में घुस गई। नरम-नरम घास खाने में जुटी रही। भारी भरकम हाथी गन्ने के खेत में जा घुसा। चूहे को गेंहू की फसल खूब पसंद आई। बकरी को पालक का खेत पसंद आया। बंदर अखरोट के पेड़ पर चढ़ गया। उसने खूब अखरोट तोड़-तोड़ कर खाए और दूसरों पर फेंक-फेंक कर मारे भी।

गरी खरगोश ने बंदर के फेंके अखरोट खाए। सूअर द्वारा उखाड़े गए आलू खाए और चुपचाप घर लौट आया। लंगूर ने भी भरपेट खाया। उसकी नजर कद्दूओं पर पड़ी। वह एक कद्दू घर भी ले आया। देर रात सब अपने-अपने घर लौट आए। सुबह ही दिलावर राजा ने सबको दरबार में बुलाया। दिलावर शेर बोला-”आशा है कि आपने मेरे बगीचे में मनपसंद चीज़े खाईं होंगी। कोई बता सकता है कि किसने क्या-क्या खाया?”

लंगूर झट से बोल पड़ा-”महाराज। सब खुद खाने में मस्त थे। इतना समय कहाँ मिला कि हम दूसरों को देखते कि कौन क्या खा रहा है।” दिलावर ने कहा-”चलो बगीचे में चलते हैं।” सब राजा दिलावर के साथ बगीचे में चल दिए। राजा दिलावर बोला-”आलू का खेत जिस दशा में तहस-नहस हो रखा है। उससे साफ पता चलता है कि आलू तो सूअर ने खाए हैं।” सूअर ने सिर झुका लिया। दिलावर आगे बढ़ा। उसने कहा-”वो देखो। नमी वाले खेत में भैंस के खुर के निशान। क्यों भैंस। नरम घास कैसी थी?” भैंस क्या कहती। चुप ही रही।

राजा की नजर गन्ने के खेत में पड़ी। राजा दिलावर बोला-”गन्ने का खेत अस्त-व्यस्त भी है,और गन्नों के बीच में जो चौड़ी जगह बन गई है। इससे पता चलता है कि गन्ने तो हाथी ने ही खाए हैं।” बेचारा हाथी भी हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया। राजा दिलावर बोला-”ये देखो। गेंहू की बालियाँ जिस तरह बिखरी हुई हैं, उससे ये अंदाजा लगाना आसान है कि चूहे ने खाया कम और नुकसान ज़्यादा किया।” यह सुनकर चूहे ने अपना सिर हिलाया।

राजा दिलावर पालक के खेत में गया। राजा बोला-”बकरी ने तसल्ली से पालक के पत्ते खाए हैं। बकरी ने पालक के पौधें की जड़ ही जड़ छोड़ी है। अब मेरे मालियों को पालक दोबारा उगाना पड़ेगा।” बकरी हँस पड़ी। किसी ने कद्दू भी खाए हैं और अखरोट भी। अखरोट का पेड़ बहुत विशाल है। अखरोट या तो बंदर ने खाए हैं या लंगूर ने।” तभी लोमड़ी बोल पड़ी-”महाराज। लंगूर ने कद्दू खाया भी और वह एक बड़ा कद्दू घर भी ले गया।”

गाय बोली-”महाराज। मैं तो बीमार थी। मैं बगीचे में आई ही नहीं। मगर लंगूर ने आधा कद्दू मुझे भी दिया। मेरे घर पहुंचाया। मगर महाराज। लंगूर ने कद्दू गिलहरी और बैल को भी बांटा।” राजा दिलावर हँस पड़ा। राजा ने कहा-”इसका मतलब यह हुआ कि अखरोट बंदर ने खाए। मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि आखिर गरी खरगोश ने क्या खाया। गरी ने बड़ी होशियारी दिखाई है।”

गरी खरगोश बोला-”महाराज। मैंने तो बचा-खुचा खाया है। मैंने उतना ही खाया,जितना मैं पचा सकता था।” यह सुनकर राजा दिलावर खुश हुआ। जानवरों से बोला-”सुना तुमने। गरी ने होशियारी से काम लिया। ज़रा गौर से मेरे बगीचे को देखो। तुमने एक ही रात में मेरे सुंदर बगीचे को तहस-नहस कर डाला है। चलो माना कि मैंने आप सभी को मनचाही चीज खाने की अनुमति दी थी। मगर इसका मतलब ये तो नहीं हुआ कि आपको मैंने बरबाद और नुकसान करने की भी छूट दी थी। मुझे तो होशियार मंत्री की खोज करनी थी। गरी खरगोश आज से मेरा मंत्री होगा।”

लंगूर बोला-”मगर महाराज। मैंने भी तो बगीचे को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया।” राजा दिलावर ने मुस्कराते हुए जवाब दिया-”तुमने चालाकी की। तुम कद्दू घर जो ले गए। इतना बड़ा कद्दू तुम खुद तो नहीं खा सके। तुमने उसे बाँट दिया। जिन्हें तुमने बाँटा, उन्होंने ही बता दिया कि कद्दू किसने खाया। अरे। लंगूर भाई। कद्दू कटेगा तो सभी में बंटेगा।” यह सुनकर सभी जानवर हँस पड़े। तभी से ये कहावत चल पड़ी है कि ‘कद्दू कटेगा तो सभी में बंटेगा।’

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